कृषकों के खेत में ( गधंपाश) फेरोमोन ट्रैप का प्रदर्शन

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11/22/20241 min read

कृषकों के खेत में ( गधंपाश) फेरोमोन ट्रैप का प्रदर्शन

कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र कटघोरा जिला कोरबा, के अधिष्ठाता डॉ एस एस पोर्ते के मार्गदर्शन में कीट वैज्ञानिक डॉ दुष्यंत कुमार कौशिक ने महाविद्यालय के रावे एवं रेडी के चतुर्थ वर्ष छात्रों को गंधपाश (फेरोमोन ट्रैप ) के महत्व के बारे में जानकारी दी गई और छात्रों द्वारा ग्राम नागोई बछेड़ा के कृषकों के खेत में फेरोमोन ट्रैप लगाकर उन्हें उनके महत्व को समझाये

फफेरोमोन ट्रैप को गंधपाश भी कहते है। यह एक प्रकार का साधारण सा दिखने वाला उपकरण है जो कीप के आकार के तथा मुख्य भाग पर लगे ढक्कन पर मादा कीट की गंध का ल्योर लगाया जाता है, जिससे नर कीट आकर्षित होते है। इस प्रकार हर प्रकार के कीटों का ल्योर अलग-अलग एवं विशिष्ठ होता है। जिस मादा का ल्योर लगाया जाता है उस कीट का नर विशिष्ठ गंध के कारण आकर्षित होकर फेरोमोन ट्रैप की कीप में गिर जाता है जो नीचे लगे हुये थैले में इकट्ठा हो जाते है। इकट्ठे हुए कीटों को मिट्टी में दबाकर मार दिया जाता है। साथ ही साथ इसके संख्या की स्थिति का आकलन करने एवं नर पर्तिगों को पकड़ कर नष्ट करके नियंत्रण पा सकते हैं।

जहां तक फेरोमोन उत्सर्जन की बात है सिर्फ मादा ही नहीं है अपितु कुछ नर जैसे हीरक पृष्ठ शलभ भी फेरोमोन उत्सर्जित करते है। एक तरफ मादा, नर को आकर्षित करती है वहीं दूसरी ओर नर फेरोमोन उत्सर्जित कर मादा को भी अपनी ओर आकर्षित करता है।

क्या है फेरोमोनः यह मादा कीट के शरीर के वाह्य ग्रंथियों के द्वारा वातावरण में छोड़ा गया एक प्रकार का गंध है। जो उस जाति के नर कीट को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए

छोड़ा जाता है, फिरोमोन के नाम से जाना जाता है। चूँकि फेरोमोन एक प्रकार का कार्बनिक पदार्थ है जो वैज्ञानिको द्वारा संश्लेषित करके इसे बड़े पैमाने पर इसका उपयोग किया जा सकता है। खेतों में विभिन्न कीटों की सघनता का आकलन करने एवं उनको बड़े पैमाने पर पकड़कर नष्ट करने के लिए फेरोमोन तकनीक का विकास किया गया है। इसमें से कुछ प्रमुख कीड़े जिनके फेरोमोन उपलब्ध हैं, निम्नवत हैं:

स्पोडोप्टेरा लिटूरा (प्रोडेनिया) यह कीट तंबाकू की सुंडी

के नाम से जाना जाता है। यह एक वहुपादपभक्छी कीट है। इसका प्रकोप भिंडी, पत्ता गोभी, तम्बाकू, सरसों, फूल गोभी आदि फसलों में होता है। इस कीट का फेरोमोन ल्यूर बाजार में स्पोडो ल्यूर के नाम से मिलता है।

हेलिकोवर्षा आर्मीजेराः यह कीट अमेरिकन वालवर्म एवं चना फली छेदक आदि नामों से जाना जाता है। इसका प्रकोप कपास, चना, अरहर, टमाटर, मटर आदि फसलों में बहुतायत होता है। इस कीट का ल्यूर हेली ल्योर नाम से मिलता है। पेक्टिनोफोरा गोस्सिपिएलाः यह कीट कपास का गुलाबी कीट नाम से जाना जाता है। यह कीट कपास एवं भिण्डी मेंलगता है। इसका ल्यूर पेक्टिनीफोरा गाँसी नाम से मिलता है। इरिआस स्पी: यह कीट कपास का गूलर बेधक के नाम से जाना जाता है जो कपास एवं मिण्डी में लगता है। इसका कीट का ल्यूर इरिआस विटिला इरिआस इन्सुलिन नाम से मिलता है।

प्रत्येक किट के लिए 50 मीटर की दूरी पर 5 ट्रैप/हेक्टर की दर से फेरोमोन ट्रैप लगाए

हीरकपृष्ठ शलभः इस कीट का प्रकोप सरसों, पात गोभी, फूल गोभी आदि फसलों पर होता है। यह डायमण्ड बैंक माथ के नाम से जानते हैं। इस किट में गंघ का उत्सर्जन नर द्वारा किया जाता है। इसका ल्यूर प्लूटेला जाइलोज़टेला नाम से मिलता है।

स्क्रिपोफागा इंसरटुस — यह कीट को पीला तना छेदक भी कहा जाता है

यह कीट एकभक्षी होते है जिसके रोकथाम के लिए फेरोमोन ट्रैप में स्क्रिप्ल्यूर का प्रयोग किया जाता है इसे 10 —12 / ह. लगाया जाता है जिसे 15 —20 दिन के अंतराल में बदला जाता है ।

ट्रैप लगाने का उचित तरीकाः खेतों में ट्रैप को सहारा देने के लिये एक डंडे की आवश्यकता होती है जिसके सहारे ट्रैप को डंडे से बांध दिया जाता है तथा ऊपर के ढक्कन में बने स्थान पर ल्यूरको फंसा दिया जाता है। फनेल में लगे पालीथीन को लंबवत कर नीचे की तरफ रस्सी की सहायता से गांठ बांध देनी चाहिए। इस ट्रैप की ऊंचाई इस तरह रखनी चाहिए कि कीट नीचे की तरफ ना गिरे। ट्रैप का ऊपरी भाग फसल की ऊंचाई से 2 फीट ऊपर होनी चाहिए ताकि गंध चारों दिशाओं में बराबर मात्रा में फैल सके। ट्रैप सदैव त्रिभुजाकार लगाना • चाहिए तथा हवा के रुख का भी ध्यान देना चाहिए। गंध हवा 1 के साथ लगभग 5 किलोमीटर तक जाता है इसलिए यह गंघ बिना कोई क्षति पहुंचाए पूरे क्षेत्र के कीटों को नियंत्रित कर र सकता है जो आने वाले अगले फसल के लिए लाभदायक सिद्ध होगा।

ट्रैप का निर्धारण एवं सघनताः प्रत्येक कीट के नर पतंगों को बड़े पैमाने पर एकत्र करने के लिए सामान्यता तीन ट्रैप प्रति एकड़ पर्याप्त है। ट्रैप से ट्रैप की दूरी 50 मीटर रखनी चाहिए। इस ट्रैप को खेत में लगा देने के उपरान्त इसमें फंसे पतिंगों की नियमित जाँच की जानी चाहिए और पाये गये पलिंगों का में ऑकड़ा रखना चाहिये जिससे उनकी गतिविधियों पर ध्यानरखा जा सके। इस तकनीक का उपयोग कृषक अपने खेतों पर कीड़ों की सघनता का आंकन कर उनके अनुसार कीटनाशकों के उपयोग की रणनीति निर्धारित कर अनावश्यक रासायनिक उपचार से बच जायें।

फेरोमोन की सीमाएंः

फेरोमोन के द्वारा कीटों की प्रजनन क्षमता पर रोक लगाया जा सकता है। इसके उपयोग से कृषि रक्षा उपचार हेतु रसायनों के अनावश्यक छिड़काव एवं उस पर होने वाले खर्च से कृषक बच सकते हैं। फेरोमोन चूँकि जैविक नियंत्रण के लिये उपयोगी पर पक्षी एवं परजीवी कीटों के लिये सुरक्षित है। अतः यह एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन की पद्धति के अन्तर्गत बहुत हीकारगर है। चूंकि फिरोमोन ट्रैप लंबे समय के बाद लाभ पहुंचाता है इसलिए इसके लाभ को समझते हुए किसानों को इसका उपयोग करना चाहिए जिससे कि वातावरण शुद्ध बना रहे तथा रासायनिक उपचार से भी बचा जा सके।

आवश्यक सावधानियाँः

ट्रैप हमेशा पौधों से 1 से 2 फीट की ऊँचाई पर रखनी चाहिए।

फेरोमोन निष्कासन (ल्यूर) को 28 दिन में एक बार अवश्य बदल दें।

ल्यूर ठण्डे एवं सूखे स्थान पर भण्डारित करें।

उपयोग किये हुये ल्यूर को नष्ट कर दें।

प्रति हेक्टेयर 5 से 6 फेरोमैग्नेटिक रखने से खेत में उसे किट की गतिविधियों के बारे में स्पष्ट जानकारी मिल जाती है

इस बात को सुनिश्चित करते रहें कि कीट एकत्र करने की थैली का मुंह बराबर तरीके से बंद रहे और खाली स्थान बना रहे जिससे आधिकारिक कीड़े एकत्र कर नष्ट किये जा सकें।

निष्कर्ष:- उक्त बातों से स्पष्ट होता है कि फेरोमोन पद्धति कीट नियंत्रण के लिये एक अनोखी पद्धति है, इसके द्वारा वातावरण प्रदूषण नही होता है, साथ ही साथ कीटों के प्राकृक्तिक शत्रुओं (परजीवी व परभक्षियों )पर भी विपरीत प्रभाव नहीं पडता है। कीट इसके प्रतिरोधक क्षमता भी विकसित नहीं कर पाते है तथा किसान भाई इनका उपयोग बहुत ही आसानी से कर सकते है।