कृषको के खेत मे नीला स्टिकी जाल व पीला स्टिकी ट्रैप का प्रदर्शन

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11/27/20241 min read

कृषको के खेत मे नीला स्टिकी जाल व पीला स्टिकी ट्रैप का प्रदर्शन

कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र कटघोरा जिला कोरबा के अधिष्ठाता डॉ एस एस पोर्ते के मार्गदर्शन में कीट वैज्ञानिक डॉ दुष्यंत कुमार कौशिक के द्वारा ग्राम पंचायत नगोई बछेरा विकासखंड पोड़ी उपरोड़ा में कृषि महाविद्यालय के रावे और रेडी के चतुर्थ वर्ष छात्रों को पीला एवं नीला चिपचिपा जाल के महत्व के बारे में जानकारी दी गई है

पीला चिपचिपा जाल का उपयोग कीटों की आबादी की निगरानी के लिए आमतौर पर इस्तेमाल की जाने वाली विधि है पीला चिपचिपा जाल को एक एकड़ में 25 से 30 जाल लगाना प्रभावी होता है इसे 15 से 20 मी एक जाल से दूसरे जाल की दूरी में लगाया जाना चाहिए। ग्राम पंचायत नागोई बछेरा के किसानों को हमने इसके महत्व के बारे में जानकारी दी तथा उनके खेतों में पीला चिपचिपा जाल को लगाया।

पीला चिपचिपा जाल कैसे बनाया जाता है -

इसके लिए आवश्यक सामग्री का उपयोग किया जाता है जैसे पीले रंग का तेल पेंट हमने ग्रीस का इस्तेमाल किया लेकिन इसमें तेल या अन्य चिपचिपा पदार्थ का उपयोग किया जा सकता है लकड़ी बांस के खंबे और उसे बांधने के लिए तार या रस्सी से

पीला चिपचिपा जाल बनाने का तरीका -

प्लाईवुड या हार्ड बोर्ड या कार्डबोर्ड (पुट्ठा) या पुरानी सीट लिया इसमें पीले रंग का ऑयल पेंट लगाए फिर थोड़ी देर सूखने के लिए छोड़ दिया पेंट किए गए बोर्ड पर ग्रीस या गोंद लगाया फिर उसको हमने पास के डंडे की मदद से रस्सी से बांध दिया

पीला चिपचिपा जाल निम्न कीट के लिए प्रभावी होते हैं सफेद मक्खी, माहो , लीफ माइनर तथा कॉटन सरसों जैसे फसल के लिए प्रभावी होता है।

पीला चिपचिपा जाल से बहुत सारे फायदे होते हैं जिसमें मुख्य रूप से कीटों की आबादी में कमी आती है

1, इसमें कीटो का प्रजनन नहीं हो पाता और आने वाले सालों में कीटों की प्रकोप जो है कम हो जाते हैं।

2, यह कीटों की निगरानी करने का एक सामान्य तरीका है।

3, यह रसायन रहित होता है और सस्ता भी होता है।

4, इसमें खेत में किस तरह के कीटो का प्रकोप होता है इसका पता चलता है ।

निष्कर्ष -

उक्त बातों से स्पष्ट होता है कि पीला चिपचिपा जाल कीट नियंत्रण के लिए एक अनोखी पद्धति है। इसके द्वारा वातावरण प्रदूषण नहीं होता है साथ ही साथ कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं, परजीवियों, परभक्षियों पर भी विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता है साथ ही साथ इसके प्रति प्रतिरोधक क्षमता भी विकसित नहीं कर पाते हैं तथा किसान भाई इनका उपयोग बहुत ही आसानी से कर सकते हैं।

पीला चिपचिपा जाल के साथ-साथ कृषकों को नीला चिपचिपा जाल जानकारी दी गयी

कृषक संतोष पटेल के बाड़ी में विभिन्न प्रकार की सब्जी लगाई गई हैं वहां पर छात्रों ने नीले चिपचिपे जाल लगाया। नीले चिपचिपे जाल से सब्जियां एवं विभिन्न फूल और फल पर लगने वाले किट विशेषकर उड़ने वाले किट इस चिपचिपे जाल में चिपक जाते हैं ।

इसमें नीले रंग की ऑयल पेंट को पलाई वुड या कार्डबोर्ड पे लगाया जाता है पेंट के सुखने के बाद उसमें ग्रीस या गोंद लगा देते हैं और इसे बांस की मदद से फसल की ऊंचाई से 40 से मी ऊंचा लगा दिया जाता है।

इससे फसल के ऊपर उड़ने वाले कीट चिपचिपे जाल पर फंस जाते हैं जिससे उनका पहचान करके रोकथाम के उपाय किए जा सकते हैं इस तरह से कीटो की संख्या में गिरावट आ जाती है। दो नीले चिपचिपे जाल की बीच की दूरी में 15 से 20 मी. का अंतराल होना चाहिए व प्रति एकड़ 10 से 15 नीले चिपचिपे जाल लगाना पर्याप्त होता है । इसे फसल उगने के 10 से 15 दिन के पश्चात लगाना चाहिए।

इस जाल को मुख्यतः थ्रिप्स कीट के रोकथाम के लिए उपयोग किया जाता है तथा इसमें माहू, पत्ती छेदक, जैसिड आदि उड़ने वाले कीट इस चिपचिपे जाल में फंस जाते हैं।

यह पर्यावरण के प्रति अनुकूल होता हैं।इसे खेत में लगाना आसान होता है, यह फसल को लंबे समय तक सुरक्षित रखता है।यदि चिपचिपे सतह पे धूल लग जाएं तो उसे बदलने की आवश्यकता पड़ सकती हैं।